कौन-सी थी वो ज़ुबान / जो तुम्हारे कंधे उचकाते ही / बन जाती थी / मेरी भाषा / अब क्यों नहीं खुलती / होंठों की सिलाई / कितने ही रटे गए ग्रंथ / नहीं उचार पाते / सिर्फ तीन शब्द

मुसाफ़िर...

Monday, November 10, 2008

नमकीन फिल्में

नमक
मुंह में भर देता है नमकीन स्वाद
और हाथों में?
फालतू बात नहीं है यह
नमक बनाने वाले हाथों में हो जायें ज़ख्म
तो फिर?, जलेंगे ना वो पोर-पोर?
नहीं, उनके ज़ख्म नहीं जलते
घावों में नमक असर नहीं कर पाता
सुना है
नमक बनने वाले अब अपने ज़ख्म सी चुके हैं
देर रात उन्हें सीडी पर दिखाई जाती हैं
नमकीन फिल्में

5 comments:

बाल भवन जबलपुर said...

sach hai

गजेन्द्र सिंह भाटी said...

nice to see.

Unknown said...

बहुत ही अच्छा लिखा है

Unknown said...

बहुत ही अच्छा लिखा है

अभिषेक मिश्र said...

लंबे अंतराल के बाद एक तीखे व्यंग्य के साथ वापसी. अच्छी लगी रचना आपकी. स्वागत अपनी विरासत को समर्पित मेरे ब्लॉग पर भी.