कौन-सी थी वो ज़ुबान / जो तुम्हारे कंधे उचकाते ही / बन जाती थी / मेरी भाषा / अब क्यों नहीं खुलती / होंठों की सिलाई / कितने ही रटे गए ग्रंथ / नहीं उचार पाते / सिर्फ तीन शब्द

मुसाफ़िर...

Sunday, July 26, 2009

अपना हक पहचानें

लता शर्मा ने पिछले दिनों एक नामी रिटेल स्टोर से कुछ शॉपिंग की। स्टोर से उन्हें एक ईनामी कूपन दिया गया। सेल्सगर्ल ने बताया, 'हम लकी ड्रॉ का आयोजन करेंगे और ईनाम आपके नाम निकल सकता है।' लता ने कूपन रख लिया। कुछ दिन बाद वह फिर उसी स्टोर में खरीदारी करने पहुंचीं। उन्होंने सेल्सगर्ल से कूपन के बारे में पूछा, 'ड्रॉ निकल गया?' जवाब मिला, 'हमने वह स्कीम वापस ले ली थी।' लता को संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। वैसे, कूपन पर भी कोई विवरण अंकित नहीं था। क्या लता के साथ ठगी हुई? हां, उसके साथ ठगी ही हुई। उपभोक्ता कानून में इसे 'अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस' कहा गया है। खैर, यह तो एक लुभावना वादा भर था। उपभोक्ता कदम-कदम पर ठगी का शिकार हो जाते हैं, लेकिन ऐसे में घबराने की जरूरत नहीं। जरूरत है थोड़ी-सी समझदारी की।
सच तो यह है कि आप कोई वस्तु खरीदती हैं या किसी सेवा का सशुल्क लाभ हासिल करती हैं, तो आप उपभोक्ता हैं और वस्तु अथवा सेवा के संबंध में पूरी गुणवत्ता प्राप्त करने की हकदार भी। ऐसे में अगर आपको सेवा या वस्तु की क्वालिटी में कोई कमी नजर आए, तो हिचकिचाएं नहीं। आपके हितों की सुनवाई के लिए सरकार की ओर से उपभोक्ता फोरम का गठन किया गया है। वस्तु की गुणवत्ता अथवा सेवा में कमी होने पर आप उपभोक्ता फोरम के पास शिकायत दर्ज करा सकती हैं। शिकायत की वजह कुछ भी हो सकती है। चाहे आपको एमआरपी से अधिक कीमत पर कोई वस्तु बेची गई हो, या गारंटी अवधि में शिकायत होने पर एक्शन न लिया गया हो। इस संबंध में उपभोक्ता फोरम में आप अपना दावा दायर कर सकती हैं। हालांकि इसके लिए ज्यूरिसडिक्शन निर्धारित किए गए हैं। मसलन 20 लाख तक रुपये तक की शिकायत हो, तो आपको जिला / क्षेत्रीय स्तर पर उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम में शिकायत दर्ज करानी होगी। आवेदन पत्र में आपको अपना परिचय, सेवादाता / विक्रेता / संबंधित कंपनी का परिचय, संक्षिप्त शिकायत, संबंधित दस्तावेज, शिकायत के निवारण के लिए स्वयं द्वारा किए गए प्रयासों की सूची और क्या हल चाहती हैं, इसका ब्योरा देना होगा।
क्षेत्रीय स्तर पर निर्णय होने के बाद शिकायतकर्ता अथवा द्वितीय पक्ष स्टेट फोरम में अपील कर सकते हैं। 20 लाख से ज्यादा का दावा होने पर स्टेट फोरम में ही सुनवाई होती है। यदि एक करोड़ रुपये का दावा है, तो आपको राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम के पास शिकायत दर्ज करानी होगी। यही नहीं, स्टेट ़फोरम के निर्णय के संबंध में भी राष्ट्रीय फोरम में अपील दर्ज करा सकती हैं। फोरम के समक्ष अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए आपको एक सादे कागज पर आवेदन लिखना होगा। इसके लिए कोई स्टांप भी नहीं लगाना होता। यही नहीं, उपभोक्ता मामले की सुनवाई के लिए अधिवक्ता की सेवाएं लेना भी अनिवार्य नहीं है। आवेदन के साथ एक शपथपत्र संलग्न करना होगा, जिससे आपकी शिकायत की सत्यता सिद्ध हो। किन्हीं कारणों से फोरम के आदेश पर संबंधित पक्ष की ओर से अमल न हो, तो आपको पुन: उसी फोरम में आवेदन करना चाहिए, जिसके समक्ष आपने शिकायत की थी। किसी भी विवाद की स्थिति में आप दो साल के अंदर फोरम की सहायता ले सकती हैं, जबकि अपील करने के लिए केवल 30 दिन का समय ही मिलता है। हालांकि उपभोक्ता मामलों में शिकायत पर सुनवाई तभी संभव हो पाती है, जब आपके पास पर्याप्त साक्ष्य और दस्तावेज हों। अक्सर लोग खरीदारी करते समय रसीद आदि लेना भूल जाते हैं। मूल्य, छूट और गारंटी के बारे में संतुष्ट होने के बाद ही खरीदारी करें और रसीद जरूर लें।
आभूषणों की खरीद में विवाद का कारण भी यही होता है। कई बार 20 कैरेट बताकर 16 कैरेट के स्वर्ण आभूषणों की बिक्री कर दी जाती है। चूंकि कुछ आभूषणों पर बैच नंबर तथा गुणवत्ता संबंधी चिन्ह अंकित नहीं होते व उनका रसीद में भी हवाला नहीं दिया जाता, इसलिए ग्राहक की शिकायत बेमानी हो जाती है। इसलिए सभी दस्तावेज संभाल कर रखें।
(दिल्ली हाईकोर्ट के अधिवक्ता तथा समाजसेवी संस्था 'नीपा' के महासचिव बीएमडी अग्रवाल से बातचीत पर आधारित)
दैनिक जागरण की पत्रिका सखी में प्रकाशित

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