कौन-सी थी वो ज़ुबान / जो तुम्हारे कंधे उचकाते ही / बन जाती थी / मेरी भाषा / अब क्यों नहीं खुलती / होंठों की सिलाई / कितने ही रटे गए ग्रंथ / नहीं उचार पाते / सिर्फ तीन शब्द

मुसाफ़िर...

Friday, September 10, 2010

दिल्ली हाट में धड़कता है देश का दिल…

नेटवर्क-6 <http://www.network6.in/2010/09/10/दिल्ली-हाट-में-धड़कता-है-द/> से साभार

पूरे भारत की तस्वीर किसी एक आईने में देखनी है…महसूस करनी है देश भर की बहुरंगी संस्कृति की धड़कन..निहारनी है कोलकाता से मुंबई तक, राजस्थान से बिहार और उत्तर प्रदेश के गांवों से लेकर चेन्नई तक की खूबसूरत कलाकृतियां…तो एक ही जगह आना काफ़ी है…ये है दिल्ली हाट…। देश का दिल है दिल्ली और यहां रहते भी हैं दिलवाले…लेकिन खुशदिल दिल्लीवालों का दिल धड़कता है दिल्ली हाट का नाम सुनकर।
वैसे, एक और ज़रूरी बात आपको बता दें…वो ये कि दिल्ली हाट में सिर्फ चीजें बनाई या बेची नहीं जातीं…यहां पर एक तरह से परंपरा को ही संजोकर रखा गया है…वो कला, जो संभाली ना जाती, तो नष्ट हो जाती…रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजों में समाकर अब अमर हो गई है… फ़ैशन का हिस्सा बन गई है…
सबसे पहले चलते हैं एक स्टॉल की ओर…जहां आंध्र प्रदेश की तीन सौ साल पुरानी लेदर पपेट्री डिस्प्ले की गई है…यानी चमड़े से बनाई गई कलाकृतियां…। लेदर पपेट्री की कला तकरीबन तीन सौ साल पुरानी है…दादा-परदादाओं के ज़माने के इस आर्ट फॉर्म को लोग एकदम भुला देते…अगर आंध्र के हुनरमंद कलाकार इसे तरह-तरह की चीजों में बदल ना देते…मसलन…अलग-अलग डिज़ाइन और शेप की घड़ियां…जो वक्त भी बताएं और कलाकृति को घर में रखने की खुशी भी दें…। इन रंग-बिरंगी आकर्षक डिज़ाइन वाली घड़ियों को लेदर पपेट्री के फॉर्म का सहारा लेकर ही तैयार किया गया है…लेकिन कलाकारों ने परंपरा भी नहीं छोड़ी है। मसलन–रामायण से जुड़ी कहानियां और उनके पात्र पुराने तरीके से उकेरे ही गए हैं…।
.मधुबनी का नाम तो सारी दुनिया में मशहूर है…ये एक फोक फॉर्म है, जो घरों से निकलकर अंतरराष्ट्रीय कला प्रदर्शनियों तक जा पहुंचा है…मैच स्टिक और बांस की मदद से बनाई जाने वाली मधुबनी पेंटिंग मोटे कागज़ पर तैयार की जाती है…और इसका तरीका भी बहुत ख़ास है…लेकिन इससे भी पहले ये जानकर आपकी खुशी का ठिकाना नहीं रहेगा कि मधुबनी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले रंग भी एकदम इको फ्रेंडली होते हैं…यानी सबके सब रंग कुदरत से ही चुनकर लाए जाते हैं…तो हो गया ना कुछ-कुछ शोखियों में घोला जाये, फूलों का शबाब जैसा फॉर्मूला…
मधुबनी की चमक-दमक दिल को तरो-ताज़ा कर देती है, लेकिन ऐसा नहीं कि यहां सिर्फ चटख रंग हैं…इन पेंटिंग्स में ग्रेस भी खूब है…ओह…मधुबनी की बात करते-करते हम ये कहां आ गए…यहां  बहुत-से क्ले मग भी रखे दिखाई हैं…वाह सचमुच…मज़ेदार और रोचक अहसास है इन मग को देखना…इस्तेमाल करने में भी ये बेहतरीन हैं…इन क्ले मग की हैंडिल में जूट का उपयोग इन्हें यूनीक बनाता है…सो अलग।
मग ही क्यों…दिल्ली हाट में ऐसा बहुत कुछ है, जिसकी ख़ूबसूरती आंखों से उतरकर सीधे दिल पर असर करती है…जैसे…ये राजस्थानी राखियां…भाई-बहन के प्यार की अमर निशानी…शंख-सीपियों से सजे कलावा…ये सब रंगों का इंद्रधनुष पेश करते हैं…लाख की चूड़ियां पहनकर कौन-सी दुल्हन इतराने नहीं लगेगी…।
चूड़ियों, कलावे और राखियों का खूबसूरत समां हटा नहीं कि दिल लूट लेने के लिए सामने हाज़िर होते हैं लकड़ी से बने बॉक्स…सेरेमिक से तैयार ड्रेसिंग टेबल आइटम इसलिए भी अपनी ओर खींचते हैं, क्योंकि इनमें छोटी-छोटी, लेकिन ज़रूरी चीजें रखी-संभाली जा सकती हैं…और जब चाहा, इनमें से निकालकर देख लिया छोटी-छोटी खुशियों का बड़ा संसार एकदम महफूज है।
लकड़ी के बॉक्स देख लिए, तो मन करने लगा…क्यों ना कुछ ऐसी ही और चीजें देख लें, जो थोड़ी-सी बड़ी भी हों…हूं…पहेली नहीं बुझाते…हम बात कर रहे हैं…झूलों की, और फर्नीचर आइटम्स की…। ख़ैर, यहां तो और भी मस्त नज़ारा है…सावन आ चुका है और कुछ लोग झूला झूलने का आनंद भी उठा रहे हैं…यूं तो ये सजाने वाले आइटम्स हैं, लेकिन जिसे मौका मिलता है, वो यहीं पर झूला भी झूल लेता है…। ये फर्नीचर शॉप भी ग़ज़ब की है…। यहां बांस से बने तमाम आइटम्स डिस्प्ले किए गए हैं। टेबल, चेयर और, और भी बहुत-से ज़रूरी फर्नीचर खरीदने के लिए लोग यहां दूर-दराज से आते हैं…।
वैसे, एक बात पर आपने गौर किया? दिल-ओ-दिमाग को ही क्या, पूरे जिस्म को झुलसा देने वाली गर्मी पड़ रही है…छोटे-छोटे बच्चे प्यास से परेशान हैं, लेकिन दिल्ली हाट आने वालों की संख्या बिल्कुल कम नहीं हो रही है…एक के बाद, कहीं छोटे-छोटे बच्चे अपने मम्मी-पापा के साथ, तो कहीं ग्रुप में निकलीं लड़कियां…। यानी खरीदारी की खरीदारी और पिकनिक भी, साथ-साथ। देशी ही नहीं, विदेशी पर्यटक भी अकेले और ग्रुप में इस बाज़ार का रुख करना नहीं भूलते।

दिल्ली हाट में सबसे ज्यादा स्टॉल या तो कपड़ों के हैं, या फिर कलाकृतियों के…वैसे, परिधान भी हैं एकदम खास…जिन्हें आम ज़ुबान में हम कहते हैं–ज़रा हटके। गुजराती ड्रेसेज़ की बात करें, तो तारीफ़ के लिए शब्द ढूंढे नहीं मिलते। पैसों के लिए पोटली…तो खुद के लिए लंहगा। यहां घर के लिए बेडशीट भी है, तो बाहर ले जाने के लिए तरह-तरह के झोले भी, जिन्हें साथ रखकर कॉलेज गोइंग गर्ल्स फूली नहीं समातीं। इन कलाकारों की कोशिश यकीनन काबिल-ए-तारीफ़ है…सोचिए तो, कितना बड़ा क़माल इन्होंने किया है। ये झोले पुराने ज़माने में इस्तेमाल किए जाते थे…लेकिन इन्हें ट्रेंडी बनाकर, नया स्टाइलिश लुक देकर इन कलाकारों ने इन झोलों को नए ज़माने के हिसाब से तैयार कर दिया…यानी कला भी बची रही और लोगों को सहूलियत भी मिल गई…नवरात्र के समय गरबा की धूम होती है और इस आयोजन में हर लड़कीचनिया चोली पहनना चाहती है…, तो इसकी खरीदारी का सबसे बेहतरीन ठिकाना है…दिल्ली हाट।
कपड़ों की बात खूब हो गई…थोड़ी-सी नज़र फिरा लेते हैं उड़ीसा की पटचित्र कला पर…लेकिन ये क्या…यहां पर नज़र जो डाली, तो हटाने का मन ही नहीं कर रहा…ये कला है ही इतनी आकर्षक…लुभावनी, आंखों को बांध लेने वाली…। इमली के बीज़ से gum बनाया, पत्थरों की मदद से घिसा, कॉटन शीट ली…दीए में आग जलाकर काला रंग इकट्ठा किया…और फिर बनाई एक लाज़वाब पेंटिंग। ऐसी मेहनत अब कहीं होती है? ऐसी लगन कहीं भी देखने को मिलती है?
ऐसी ही लाजवाब कला है टसर आर्ट। इस पर उकेरी गई राम राज्याभिषेक की तस्वीर दिल-ओ-दिमाग में इस तरह अंकित हो जाती है कि भुलाए नहीं भूलती। टसर आर्ट को बनाना बहुत मुश्किल होता है। ग़ज़ब का बैलेंस बनाकर कलाकार पहले स्केच तैयार करते हैं, फिर छोटे-छोटे ब्रश से उन्हें क़लर किया जाता है। इसी तरह ताड़पत्र पेंटिंग भी परंपरा को सुरक्षित रखने का अनूठा उदाहरण है…।
पुराने ज़माने में काग़ज़ का आविष्कार नहीं हुआ था। तब सभी ग्रंथ ताड़पत्र पर ही लिखे जाते थे…। अब वो ग्रंथ पूजाघरों में या फिर संग्रहालयों में ही नज़र आते हैं, लेकिन उड़ीसा के कलाकारों ने ताड़पत्र पर पेंटिंग बनाकर उस समय की याद को सुरक्षित रखा है…।
सच है, कलाकार की कल्पना की कोई सीमा नहीं होती, ना ही उसके कमाल की…अब इकतारा कलाकार को ही देख लीजिए। एक लकड़ी ली, दीया उठाया…तार लगाया और बन गया इकतारा…फिर क्या…हवा में घुलने लगी संगीत की मिठास…
संगीत की तरह ही मन लुभाती है पपेटरी कला…बोल री कठपुतली…गाना याद है…अगर हां, तो कठपुतलियां भी याद होंगी…तरह-तरह की कहानियां सुनातीं कठपुतलियां…यूं तो अब गांवों-कस्बों में पपेट शोज़ होने बहुत कम हो गए हैं, लेकिन दिल्ली हाट में कठपुतलियां मौजूद हैं। वो भी पुराने स्वरूप में ही नहीं। ये वाल हैंगिंग की शक्ल में भी आपको मिल जाएंगी…। पपेटरी आर्ट देखकर अपना रिच कल्चर तो याद आता ही है, मन खुशी से भर जाता है…ऐसे में बहुत-से लोग भले ही पपेट्स खरीदें नहीं, लेकिन वो इन लम्हों को क़ैमरे में ज़रूर कैद कर लेना चाहते हैं, ताकि जैसे ही मौका मिले…तस्वीर देखी और कठपुतली से मुलाकात कर ली…
सच है…तस्वीरों की भी अपनी अलग ही दुनिया है…तभी तो जो लोग दिल्ली हाट आते हैं…यहां की यादें तुरंत संजो लेना चाहते हैं…इस काम में उनकी मदद करते हैं कुछ नौजवान पेंटर…ऐसे कलाकार, जो पलक-झपकते ही उनकी तस्वीर तैयार कर देते हैं…। बस सामने खड़े हो जाइए, बैठ जाइए और सधे हुए कलाकार की उंगलियों में थमा ब्रश या फिर पेंसिल आपका स्केच काग़ज़ पर उकेर देगी…वैसे, तस्वीर बनवाने के लिए खुद जाना भी ज़रूरी नहीं है…अगर कोई दोस्त या परिवार का सदस्य साथ नहीं आ पाया है, लेकिन उसकी तस्वीर साथ में है, तो कलाकार के लिए उसका स्केच बनाना भी दाएं हाथ का खेल है…
पर…दिल्ली हाट गए और कड़े-ब्रेसलेट नहीं खरीदे, तो समझिए एक खूबसूरत मौका गंवा दिया…यहां बहुत-सी दुकानों पर किस्म-किस्म के कड़े डिस्प्ले किए गए हैं…कुछ अट्रेक्टिव लेदर बैग्स भी मिल जाएंगे।
बार-बार नज़र जाती है तरह-तरह के परिधानों पर। कश्मीर की पश्मीना शॉल से लेकर गुजरात की चनिया चोली तक…दिल्ली हाट में सारे देश की संस्कृति के रंग जैसे बिखरे पड़े हैं…रिंग लेनी हो या फिर इयरिंग तलाशनी हो…धागे से बनी खूबसूरत चूड़ियां पहननी हों…सबका ठिकाना दिल्ली हाट है…
वैसे, खरीदारी करने के लिए हाट-बाज़ार आने वाले मेहंदी लगवाने का मौका नहीं छोड़ते। कोई भी काम करने से पहले मेहंदी लगवाने की परंपरा ही रही है, वहीं दिल्ली हाट में कलाकारों ने इसे खूब अट्रेक्टिव बना दिया है…। वो तरह-तरह की डिज़ाइन बनाते हैं, जिसे लोग अपने हाथ पर चाव के साथ लगवाते हैं…और मेहंदी ही क्यों…बाल गुंथवाने का पुराना शौक भी यहां परवान चढ़ता है…बच्चे-बूढ़े और जवान…सब कलाकारों के हाथों का हुनर पाकर अपनी जुल्फें सजा लेते हैं…
ख़ैर, खरीदारी, फोटोग्राफ़ी और साज-सिंगार सब हो जाए, फिर भी अगर संगीत और नृत्य का आनंद ना लिया जाए, तो सैर अधूरी रहेगी…तो चलते-चलते ज़रूर मिल लीजिएगा राजस्थान के मशहूर कच्छी घोड़ी नृत्य के कलाकार से…
(वैधानिक चेतावनी और संदेश…दूरदर्शन के लिए लिखे गए एक कार्यक्रम की स्क्रिप्ट की अविकल प्रस्तुति…। सरकारी माल है, कृपया टीपिए नहीं…

1 comment:

निर्मला कपिला said...

हुत अच्छा लगा आलेख। आखिर यूँ ही नही कहते दिल्ली दिल वालों की। धन्यवाद इसे पढवाने के लिये।